*मैडॉक फिल्म्स के अंदर की कहानी: कैसे दिनेश विजन बने हिंदी सिनेमा के सुपरहिट मशीन*
फ़िल्ममेकर और प्रोड्यूसर दिनेश विजन, यानी मैडॉक फिल्म्स के मास्टरमाइंड, आज हिंदी सिनेमा की परिभाषा ही बदल रहे हैं। बड़े-बड़े नामों के पीछे भागने वाली इंडस्ट्री में इन्होंने अपनी अलग ही पटरी बिछाई है — कभी "मिमी" जैसी इमोशनल कहानियों के साथ, तो कभी "स्त्री" और अब "छावा" जैसी ग्रैंड हिस्टॉरिकल फ़िल्मों के साथ।
दिनेश विजन ने Stree से एक पूरा जॉनर खड़ा कर दिया, और Stree 2 के साथ तो सीधे रिकॉर्ड बुक में एंट्री मार ली — ये बनी अब तक की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली हिंदी फ़िल्म (डोमेस्टिक मार्केट में)। अब 2025 में आ रही है उनकी ड्रीम हिस्टॉरिकल “छावा” — और मैडॉक फिल्म्स बन चुका है ऐसा स्टूडियो जिसकी स्क्रिप्ट हर एक डायरेक्टर और राइटर की विशलिस्ट में है।
“हम कंटेंट-फर्स्ट स्टूडियो हैं। जिसके पास सबसे हटके आइडिया होता है, वो सबसे पहले हमारे दरवाज़े पर आता है — और हमें ऐसा ही पसंद है,” विजन ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा।
लेकिन बात सिर्फ हटके कहानियों की नहीं है — दिनेश विजन उन कहानियों को दिल से प्रेज़ेंट करते हैं, बिना स्टार पावर के सहारे।
“दिनेश कहानी को सिर्फ सुनते नहीं, वो आंखों से ट्रेलर देख लेते हैं,” कहते हैं Stree और Stree 2 के डायरेक्टर अमर कौशिक।
“जब बाकी इंडस्ट्री सोच रही होती है कि चलो हॉरर कॉमेडी बना लेते हैं, दिनेश एकदम अलग रूट पर चल रहे होते हैं — जो थोड़ा रिस्की भी है,” कहते हैं लक्ष्मण उटेकर (मिमी, छावा, जरा हटके जरा बचके)।
कृति सेनन, जिन्हें “मिमी” के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला, कहती हैं, “अगर दिनेश को किसी प्रोजेक्ट या इंसान पर यकीन है, तो वो दुनिया की कोई भी बात नहीं सुनते। वो अपने लोगों को पूरी ताक़त से सपोर्ट करते हैं।”
वहीं छावा के लीड एक्टर विक्की कौशल कहते हैं, “वो हमारी मिट्टी, कल्चर और इतिहास से निकली कहानियों को ढूंढने में लगे हैं — यही ‘देसी तड़का’ इंडियन सिनेमा को इंटरनैशनल बनाने की रेसिपी है।”
मैडॉक का ट्रैक रिकॉर्ड देखिए — कभी ‘हिंदी मीडियम’, कभी ‘मिमी’, फिर ‘स्त्री’, ‘भेड़िया’, ‘मुनज्या’ — इंडिया का पहला हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स भी इन्होंने ही खड़ा किया है। और अब 2028 तक के लिए आठ नई फ़िल्में लाइन में हैं!
स्टोरी, इंस्टिंक्ट और आत्मा से बनी इस नई पीढ़ी की इंडियन स्टूडियो की कहानी बस शुरू हुई है। और मैडॉक फिल्म्स का ये सफर, भाईसाहब… अब माइलस्टोन नहीं, मास्टरक्लास बन चुका है।