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पद्मश्री गीता चंद्रन अपनी 50 वर्ष की भरतनाट्यम यात्रा का जादू एनसीपीए में बिखेरेंगी

पद्मश्री गीता चंद्रन अपनी 50 वर्ष की भरतनाट्यम यात्रा का जादू एनसीपीए में बिखेरेंगी
6 अक्टूबर, 2024 को नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (NCPA) में प्रसिद्ध भरतनाट्यम नर्तकी, पद्मश्री गीता चंद्रन का एक अविश्वसनीय प्रदर्शन होने जा रहा है। 'प्रवाहती' नामक यह प्रदर्शन एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो चंद्रन के भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में 50 वर्षों के सफर को दर्शाता है। 1991 में स्थापित सांस्कृतिक संगठन नाट्य वृक्ष की संस्थापक, चंद्रन ने एक नर्तकी और एक शिक्षक के रूप में भरतनाट्यम की गहराइयों के अन्वेषण में दशकों बिताए हैं, किंतु उनका आगामी प्रदर्शन इस प्राचीन कला रूप पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करने का वादा करता है।
अपने आगामी शो में चंद्रन भरतनाट्यम के गतिशील प्रवाह का अन्वेषण कर रही हैं। "प्रवाहती समय और स्थान दोनों को स्थिर नहीं, बल्कि कल्पना और निष्पादन दोनों के लिए आगे बढ़ने वाले के रूप में देखता है," वे बताती हैं। प्रमुख नर्तकी इस बात पर ज़ोर देती हैं कि नृत्य, जीवन की तरह, परंपरा तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि कलाकार के स्वभाव के माध्यम से विकसित होना चाहिए और पुनर्व्याख्या करनी चाहिए। शास्त्रीय तकनीकों के माध्यम से समकालीन अभिव्यक्तियों को तैयार करने की उनकी क्षमता उनके करियर की एक विशेषता है, और प्रवाहती इसका एक प्रमाण है।
'प्रवाहती' की कोरियोग्राफी चार भावनात्मक टुकड़ों के माध्यम से प्रकट होती है: 'मल्लारी', ‘ऋतुसम्हारा’, 'वाहती', और 'तिल्लाना'। यह ‘मल्लारी’ से शुरू होता है, जो भगवान शिव के लिए एक लय पूर्ण और जटिल श्रद्धांजलि है। दक्षिण भारत की मंदिर परंपराओं में निहित, यह टुकड़ा चिदंबरम के नर्तक, नटराज को समर्पित है। संगीत इस समूह की गतिशीलता और जटिल भरतनाट्यम आड़वों के दृश्य अनुभव को बढ़ाता है। यह प्रदर्शनी, फिर, कालीदास के ‘ऋतुसम्हारा’ के साथ प्रकृति की ओर रुख करती है। यह टुकड़ा मानसून के मौसम को उसकी पूरी सुंदरता और उग्रता में कैप्चर करता है - बारिश की बौछार को देख नृत्य करने वाले मोरों से लेकर भारी वर्षा तक जो भूमि को तबाह कर देती है। कविता के चार छंदों के माध्यम से, यह टुकड़ा प्रेमियों के भावनात्मक उथल-पुथल का भी पता लगाता है, प्रकृति के चक्र में मानवीय अनुभव की परतें को जोड़ते हुए। तीसरा टुकड़ा, ‘वाहती’, चंद्रन की नृत्य परंपरा के साथ गहरे संबंध को दर्शाता है और साथ ही साथ उनकी व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। कृष्ण नी बेगाने बारो से प्रेरित होकर, वह तीन अलग-अलग भावनात्मक लेंसों के माध्यम से कृष्ण के आह्वान की कल्पना करती हैं: एक माँ (यशोदा) का कोमल आग्रह, एक गोपी की चंचल इच्छा और एक भक्त की शुद्ध भक्ति। चंद्रन का मानना कि भरतनाट्यम बदलता रहता है, वो इस टुकड़े में साफ चमकता है। यह प्रदर्शनी उत्सवपूर्ण 'तिल्लना' में समाप्त होती है, जो एक तीव्र गति वाला, आनंददायक नृत्य है जो कलात्मक यात्रा की पूर्ति का प्रतीक है।
अपने 50 वर्ष के सफर पर विचार करते हुए चंद्रन साझा करती हैं, "जैसे मैं अक्टूबर 1974 में हुए मेरे अरंगेट्रम के बाद से नृत्य करने के पांच दशक पूरे करने के पड़ाव के पास पहुंच रही हूं, मैं केवल अपने दिग्गज गुरुओं को एक समृद्ध श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहती हूं, जिन्होंने इतने प्यार से इस अमूल्य कला को मेरे साथ साझा किया, लेकिन मुझे इसकी परंपरा पर प्रश्न करने की आज़ादी भी दी। वह आगे कहती हैं, "मुझे रोज़ाना भरतनाट्यम उर्जा देता है। यह मुझे प्रदर्शन, शिक्षण, संचालन, सहयोग और भी कई अवसरों के माध्यम से इसकी विशाल क्षमता का पता लगाने के लिए प्रेरित करता है।"

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