हेमा मालिनी द्वारा गुलज़ार साब की अधिकृत जीवनी का लोकार्पण
January 07, 2024
0
हेमा मालिनी द्वारा गुलज़ार साब की अधिकृत जीवनी का लोकार्पण, वाणी प्रकाशन ग्रुप ने किया प्रकाशन
ऑस्कर व दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित फिल्म निर्माता, गीतकार और कवि गुलजार की अधिकृत जीवनी 'गुलजार साब: हजार रहें मुड़ के देखीं...' 9 जनवरी 2024 को शाम 5:30 बजे वेदा कुनबा थिएटर, सिंटा टॉवर, अंधेरी वेस्ट, मुंबई में लोकार्पित की जाएगी। यह पुस्तक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता लेखक यतींद्र मिश्र द्वारा लिखी गई है और वाणी प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित की गई है।
स्वर्ण कमल पुरस्कार विजेता, कवि, लेखक और संगीत विद्वान यतींद्र मिश्रा ने पुस्तक में गुलज़ार के साथ 15 वर्षों की अपनी बातचीत को संकलित किया है। साठ साल पुराने वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रकाशक अरुण माहेश्वरी का मानना है कि यह किताब पीढ़ियों तक संग्रहणीय रहेगी। “गुलज़ार साब: हज़ार राहें मुड़ के देखीं.. हमारे देश की विभूति और अद्भुत कलाकार गुलज़ार साहब के बारे में सीखने का मौका देगी और उनके जीवन को समझने के लिए राहें खोलेगी। यतींद्र ने इस पुस्तक में सूक्ष्मता से सभी किस्से पिरोये हैं। यह सराहनीय काम है", उन्होंने कहा। समूह की सीईओ अदिति माहेश्वरी का मानना है कि यह पुस्तक गुलज़ार साहब की महान पीढ़ी से लेकर आज की युवा पीढ़ी तक काव्यात्मक निरंतरता बनाए रखेगी। इस किताब से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
माननीय सांसद, अनुभवी नृत्यांगना और अभिनेत्री हेमा मालिनी द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया जायेगा और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक और कवि शीन काफ निज़ाम विशेष अतिथि होंगे। कार्यक्रम में फिल्म निर्देशक, कवि, संगीत निर्देशक और कहानीकार विशाल भारद्वाज सम्माननीय वक्ता होंगे। कार्यक्रम का संचालन यूनुस खान करेंगे।
यतींद्र मिश्र की यह किताब गुलज़ार की आलोचनात्मक जीवनी है। गुलज़ार के साथ डेढ़ दशक की बातचीत के माध्यम से, लेखक ने कहानियाँ, यादें और किस्से इकट्ठे किये हैं जो एक किताब की शक्ल में हमारे सामने है। पुस्तक में फिल्मों, कविताओं, गीतों और पटकथा के साथ-साथ भारत के सबसे प्रिय लेखक और फिल्मकार द्वारा लिखे गए संवादों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है। इसमें पटकथाओं, संवादों और उनकी अपनी निर्देशन तकनीकों के माध्यम से कुछ फिल्मों का विवरण दिया गया है। उनकी अनूठी पदावली और गीत लेखन तकनीक को अन्य लेखकों, गीतकारों और कवियों के काम की तुलना में कभी-कभी खोजा और समझाया जाता है। गुलज़ार के साथ एक विस्तृत बातचीत किताब का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शोध, संवाद और संगीत के बारे में लेखक का अपना ज्ञान इसे गुलज़ार को समझने और सराहने का एक अनूठा उपकरण बनाता है।
वाणी प्रकाशन ग्रुप को ‘पब्लिशिंग नेक्स्ट अवार्ड-2022’, 'स्वर्ण कमल सम्मान', ' द फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन पब्लिशर्स', 'डिस्टिंग्विश्ड पब्लिशर अवार्ड' और 'बिज़नेस एक्सीलेंस अवार्ड' से सम्मानित किया गया है। वाणी प्रकाशन ग्रुप (वाणी प्रकाशन व भारतीय ज्ञानपीठ) से प्रकाशित गुलज़ार सा'ब की चर्चित पुस्तकें इस प्रकार है- 'कुछ तो कहिये...' ( हिन्दी व उर्दू ), 'यार जुलाहे... गुलज़ार'( हिन्दी व उर्दू ), 'प्लूटो' ( हिन्दी व उर्दू ), 'ड्योड़ी'( हिन्दी व उर्द), 'कुसुमाग्रज की चुनी सुनी नज़्में', 'पंद्रह पाँच पचहत्तर', 'जीना यहाँ...', 'मंज़रनामा' 2 खंडों में' ( हिन्दी व उर्दू ), 'गुच्छा' ( बॉक्स एडिशन) और 'पिछले पन्ने' । उनका प्रकाशन गृह के साथ 20 वर्षों से अधिक का सम्बन्ध रहा है।
हेमा मालिनी जी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1963 में तमिल फ़िल्म ‘इधु साथियम’ से की। मालिनी ने पहली बार ‘सपनों का सौदागर’ (1968) में मुख्य भूमिका निभाई , और कई हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय किया, अक्सर धर्मेन्द्र के साथ , जिनसे उन्होंने 1980 में शादी की। ‘ड्रीम गर्ल’, और 1977 में इसी नाम की एक फ़िल्म में अभिनय किया। उन्होंने कॉमेडी सीता और गीता (1972) में अपनी दोहरी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीता , और ‘बाग़बान’ (2003) तक दस बार नामांकित हुईं। सन् 2000 में, मालिनी जी को फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाज़ा गया और 2019 में सिनेमा में 50 वर्षों के उत्कृष्ट योगदान के लिए फ़िल्मफेयर विशेष पुरस्कार से पुरस्कृत हुईं।
मालिनी जी को 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, जो भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है । 2012 में, सर पदमपत सिंघानिया विश्वविद्यालय ने मालिनी जी को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया । मालिनी जी ने राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया है। 2006 में, मालिनी जी को भारतीय संस्कृति और नृत्य में उनके योगदान और सेवा के लिए दिल्ली में भजन सोपोरी से सोपोरी एकेडमी ऑफ म्यूज़िक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स (सामापा) वितस्ता पुरस्कार मिला। 2013 में, उन्हें भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए आंध्र प्रदेश सरकार से एनटीआर राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। मालिनी जी धर्मार्थ और सामाजिक उद्यमों से जुड़ी रही हैं। वर्तमान में, मालिनी इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) की आजीवन सदस्य भी हैं।
शीन काफ़ निज़ाम
26 नवम्बर 1945 को जोधपुर में जन्में हुए शीन काफ़ निज़ाम ने शाइरी के साथ-साथ आलोचना, शोध और सम्पादन में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, राष्ट्रीय इक़बाल सम्मान, भारतीय भाषा संस्थान द्वारा भाषा-भारती सम्मान, बेगम अख़्तर ग़ज़ल सम्मान तथा राजस्थान उर्दू अकादेमी का सर्वोच्च ‘महमूद शीरानी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। शीन काफ़ निज़ाम की शाइरी के प्रकाशित संग्रहों में ‘दश्त में दरिया’, ‘साया कोई लम्बा न था’, ‘सायों के साये में’, ‘रास्ता ये कहीं नहीं जाता’ और ‘गुमशुदा दैर की गूँजती घंटियाँ’ (साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत उर्दू कविता-संग्रह) देवनागरी में, तथा ‘नाद’, ‘बयाज़े खो गयी है’ और ‘गुमशुदा दैर की गूँजती घंटियाँ’ उर्दू में उल्लेखनीय हैं। ‘लफ़्ज़ दर लफ़्ज़’ और ‘मानी दर मानी’ आलोचनात्मक और विवेचनात्मक पुस्तकों के लेखक शीन काफ़ निज़ाम ने ‘ग़ालिबियत और गुप्ता रिज़ा’ (माहिरे-ग़ालिबियत स्व. अल्लामा कालीदास गुप्ता ‘रिज़ा’) और ‘भीड़ में अकेला’ (स्व. मख्मूर सईदी पर केन्द्रित) के सम्पादन के साथ उर्दू की साहित्यिक पत्रिकाओं का भी सम्पादन किया। कई राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय साहित्यिक आयोजनों में रचना-पाठ तथा पत्र-वाचन के लिए आमन्त्रित निज़ाम इंग्लैंड, अमरीका, सीरिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान, नेपाल, क़तर तथा खाड़ी देशों का सफ़र कर चुके हैं। नन्दकिशोर आचार्य के साथ उर्दू कवियों का संचयन और सम्पादन के साथ-साथ हिन्दी तथा राजस्थानी का उर्दू एवं उर्दू साहित्य का हिन्दी में अनुवाद और लिप्यन्तरण भी किया है।
वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित शीन काफ़ निज़ाम चर्चित पुस्तकें 'और भी है नाम रास्ते का' और 'दीवाने ग़ालिब' (सम्पादन, विवेचन और रूपान्तरण) है।
विशाल भारद्वाज भारतीय हिन्दी फ़िल्म उद्योग बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध संगीतकार, गीतकार, पटकथा लेखक व निर्देशक हैं। उन्हे गॉडमदर और इश्किया के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। विशाल के शब्दों में गुलज़ार साब उनके प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। विशाल भारद्वाज का जन्म 04 अगस्त 1965 में उतर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के शिकारपुर नामक ग्राम में हुआ था। उनका बचपन मेरठ में गुज़रा। उनके पिता राम भारद्वाज शुगरकेन में इंसपेक्टर थे और शौकिया तौर पर हिन्दी फ़िल्मो के लिए गाने लिखते थे। पिता के चाहने पर उन्होने संगीत सीखा। दिल्ली आने पर एक दोस्त की वजह से उनकी संगीत में दिलचस्पी हुई। विशाल ने राज्य स्तरीय क्रिकेट मैच भी खेले हैं। शुरुआती दौर में उन्होंने पेन म्यूज़िक रिकॉर्डिंग कम्पनी मे भी काम किया। तभी दिल्ली में उनकी मुलाक़ात गुलज़ार साब से हुई। गुलज़ार के साथ उन्होंने ‘चड्डी पहन के फूल खिला है’ गीत की रिकॉर्डिंग की। उसके बाद से उन्हें 'माचिस' के लिए संगीत बनाने का मौक़ा मिला। इस प्रकार 2014 में शेक्सपियर के उपन्यास 'हेलमेट' पर आधारित उनकी फ़िल्म 'हैदर' आई जिसममें उन्होंने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और फ़िल्म ने 5 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीते हैं।
अरुण माहेश्वरी
अरुण माहेश्वरी वाणी प्रकाशन ग्रुप के चेयरमैन व प्रबन्ध निदेशक हैं। 1960 में जन्मे श्री माहेश्वरी अपने पिता और वाणी प्रकाशन के संस्थापक डॉ. प्रेमचन्द ‘महेश’ के निधन के बाद कम उम्र में ही अपनी माँ शिरोमणि देवी, जो वाणी प्रकाशन की सह-संस्थापक थीं, की सहायता के लिए प्रकाशन से जुड़ गये। ये शुरुआती वर्षों में प्रकाशन गृह की हस्तलिखित पत्रिका के प्रकाशन में मदद करने से लेकर आज हिन्दी के सबसे प्रतिष्ठित और बड़े स्वतन्त्र प्रकाशन ग्रुप के नेतृत्व करने तक, यानी चार दशकों से अधिक समय से महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले एक भारतीय प्रकाशन व्यवस्था के गवाह रहे हैं।
अरुण माहेश्वरी भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्था ‘केन्द्रीय साहित्य अकादेमी’ की आम-सभा के भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि रहे हैं। वे नागपुर विश्वविद्यालय के ‘बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़’ में सदस्य के रूप में चुने गये। इन्दिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़िज़िकल एजुकेशन एंड स्पार्ट्स साइंसेज़, नयी दिल्ली की प्रबन्धन समिति के सदस्य रहे हैं। वे 2011-2017 के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय की सलाहकार समिति के मानद सदस्य भी रह चुके हैं।
इनके नेतृत्व में वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित 'लता : सुर-गाथा' (यतीन्द्र मिश्र) पुस्तक को वर्ष 2017 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा 'स्वर्ण कमल सम्मान' से सम्मानित किया गया। हिन्दी में अनूदित और वाणी प्रकाशन से प्रकाशित फ़्रेंच ग्राफ़िक उपन्यास ‘पर्सेपोलिस’ (मार्जान सतरापी) को वर्ष की सर्वश्रेष्ठ मुद्रित पुस्तक के रूप में ‘पब्लिशिंग नेक्स्ट अवार्ड-2022’ से पुरस्कृत किया गया। इन्हें वर्ष 2008 में भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशक के रूप में द फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन पब्लिशर्स द्वारा 'डिस्टिंग्विश्ड पब्लिशर अवार्ड' प्रदान किया गया। हिन्दी और पोलिश, हिन्दी और स्वीडिश तथा हिन्दी और रूसी भाषा के बीच सांस्कृतिक सम्बन्धों के विकास के लिए श्री माहेश्वरी को पोलैंड, स्वीडन और रूस सरकार द्वारा पदक और प्रशस्ति-पत्र प्रदान किये गये। श्री माहेश्वरी 2017 में ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड, लन्दन द्वारा 'बिज़नेस एक्सीलेंस अवार्ड' से भी सम्मानित किये जा चुके हैं।
इन्होंने 2022 में 1944 में स्थापित भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह भारतीय ज्ञानपीठ के प्रकाशन का कार्यभार सँभाला। 2015 में वाणी फ़ाउंडेशन की नींव रखी जो वाणी प्रकाशन ग्रुप की ग़ैर-लाभकारी संस्था है। इस फ़ाउंडेशन द्वारा जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल के दौरान जयपुर बुकमार्क में ‘वाणी फ़ाउंडेशन डिस्टिंग्विश्ड ट्रांसलेटर अवार्ड’ दिया जाता है। पुरस्कार अब आठवें वर्ष में है। अरुण माहेश्वरी भाषाविज्ञान विषय में हिन्दी से स्नातकोत्तर हैं।
'गुलज़ार सा’ब : हज़ार राहें मुड़ के देखीं...’ पुस्तक का परिचय
गुलज़ार एक ख़ानाबदोश किरदार हैं, जो थोड़ी दूर तक नज़्मों का हाथ पकड़े हुए चलते हैं और अचानक अफ़सानों की मंज़रनिगारी में चले जाते हैं। फ़िल्मों के लिए गीत लिखते हुए कब डायलॉग की दुनिया में उतर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। वे शायरी की ज़मीन से फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखते हैं, तो अदब की दुनिया से क़िस्से लेकर फ़िल्में बनाते हैं।
अनगिनत नज़्मों, कविताओं, ग़ज़लों और फ़िल्म गीतों की समृद्ध दुनिया है गुलज़ार के यहाँ, जो अपना सूफ़ियाना रंग लिये हुए शायर का जीवन-दर्शन व्यक्त करती है। इस अभिव्यक्ति में जहाँ एक ओर हमें कवि के अन्तर्मन की महीन बुनावट की जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर सूफ़ियाना रंगत लिये हुए लगभग निर्गुण कवियों की बोली - बानी के क़रीब पहुँचने वाली उनकी आवाज़ या कविता का स्थायी फक्कड़ स्वभाव हमें एकबारगी उदासी में तब्दील होता हुआ नज़र आता है। इस अर्थ में गुलज़ार की कविता प्रेम में विरह, जीवन में विराग, रिश्तों में बढ़ती हुई दूरी और हमारे समय में अधिकांश चीज़ों के संवेदनहीन होते जाने की पड़ताल की कविता है। इस यात्रा में ऐसे कई सीमान्त बनते हैं, जहाँ हम गुलज़ार की क़लम को उनके सबसे व्यक्तिगत पलों में पकड़ने का जतन करते हैं।
लेखक परिचय - यतीन्द्र मिश्र
हिन्दी कवि, सम्पादक, संगीत और सिनेमा अध्येता हैं। अब तक चार कविता-संग्रह-यदा-कदा, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, ड्योढ़ी पर आलाप और विभास; शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी पर गिरिजा, नृत्यांगना सोनल मानसिंह से संवाद पर देवप्रिया, शहनाई उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ के जीवन व संगीत पर सुर की बारादरी तथा पार्श्वगायिका लता मंगेशकर की संगीत-यात्रा पर लता: सुर-गाथा प्रकाशित । प्रदर्शनकारी कलाओं पर विस्मय का बखान, कन्नड़ शैव कवयित्री अक्क महादेवी के वचनों का हिन्दी में पुनर्लेखन भैरवी, हिन्दी सिनेमा के सौ वर्षों के संगीत पर हमसफ़र, अयोध्या के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अध्ययन पर आधारित अयोध्या : परम्परा, संस्कृति, विरासत विशेष चर्चित । फ़िल्म निर्देशक व गीतकार गुलज़ार की कविताओं और गीतों के चयन क्रमशः यार जुलाहे तथा मीलों से दिन, अवध संस्कृति पर आधारित गजेटियर शहरनामा : फ़ैज़ाबाद तथा ग़ज़ल गायिका बेगम अख़्तर पर आधारित अख़्तरी सम्पादित पुस्तकें। गिरिजा, विभास, अख़्तरी तथा लता : सुर गाथा का अंग्रेज़ी, यार जुलाहे और मीलों से दिन का उर्दू तथा अयोध्या श्रृंखला कविताओं का जर्मन अनुवाद प्रकाशित ।
राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार 'स्वर्ण कमल', मामी फ़िल्म पुरस्कार, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, रज़ा सम्मान, भारतीय भाषा परिषद युवा पुरस्कार, स्पन्दन ललित कला सम्मान, द्वारका प्रसाद अग्रवाल भास्कर युवा पुरस्कार, एच.के. त्रिवेदी स्मृति युवा पत्रकारिता पुरस्कार, महाराणा मेवाड़ सम्मान, हेमन्त स्मृति कविता पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, शमशेर सम्मान, कलिंगा बुक एवॉर्ड से सम्मानित। भारतीय ज्ञानपीठ फेलोशिप, संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार की कनिष्ठ शोधवृत्ति और सराय, नयी दिल्ली की स्वतन्त्र शोधवृत्ति प्राप्त। दूरदर्शन (प्रसार भारती) के कला-संस्कृति के चैनल डी.डी. भारती के सलाहकार के रूप में कार्यरत (2014-2016)। साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों हेतु भारत के प्रमुख नगरों समेत अमेरिका, इंग्लैंड, मॉरीशस और अबू धाबी की यात्राएँ। सर्वश्रेष्ठ सिनेमा लेखन के लिए 69वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ज्यूरी के चेयरमैन, 66वे राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ज्यूरी के सदस्य, 52वें इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल ऑफ़ इंडिया, गोवा की ज्यूरी के सदस्य तथा उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार की निर्णायक समिति के सदस्य रहे।
वाणी प्रकाशन ग्रुप (वाणी प्रकाशन व भारतीय ज्ञानपीठ) से प्रकाशित यतीन्द्र मिश्र की चर्चित पुस्तकें 'लता : सुर गाथा', 'अख्तरी : सोज़ और साज़ का अफसाना'(सम्पादन), 'विभास', 'शहरनामा फ़ैज़ाबाद'(सम्पादन), 'गिरिजा', 'भैरवी अक्क महादेवी की कविताएं', अयोध्या : परम्परा संस्कृति विरासत', 'The Last Weave', 'देवप्रिया', 'अयोध्या तथा अन्य कविताएं', विस्मय बखान', 'अज्ञेय जितना तुम्हारा सच' (सम्पादन), 'कई समयों में ( संपादन), 'कुँवर नारायण: संसार', 'कुँवर नारायण: उपस्थिति '(संपादन), 'यार जुलाहे... गुलज़ार' (सम्पादन), ' किस भगोल किस सपने में' (सम्पादन), और 'कला सौन्दर्य'(सम्पादन) है।