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भारतीय सिनेमा मे रहा भारतीय नारी का सशक्त अभिनय तथा किरदार

 *भारतीय सिनेमा में अपरंपरागत और सशक्त महिला किरदारों का जश्न!*


*रिताभरी चक्रवर्ती से लेकर लीजा रे तक, भारतीय सिनेमा में सशक्त किरदारों को पर्दे पर दर्शाती महिलाएं!*


भारतीय सिनेमा ने बड़े पर्दे पर महिलाओं के किरदार में एक लंबा सफर तय किया है। इस लिस्ट में हम भारतीय सिनेमा में चार अपरंपरागत मजबूत महिला किरदारों पर प्रकाश डालते हैं, जिन्होंने इंडस्ट्री और समाज दोनों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। ये किरदार न केवल भौतिक अर्थों में मजबूत हैं बल्कि उनमें मानदंडों को चुनौती देने, अन्याय से लड़ने और अपनी पहचान को फिर से परिभाषित करने की ताकत भी है।


दमन (2001):


दुर्गा सैकिया के रूप में रवीना टंडन की भूमिका एक ऐसी महिला का किरदार है, जो अपनी परिस्थितियों के सामने झुकने से इनकार करती है। दुर्गा एक अपमानजनक विवाह में फंसी एक युवा महिला है और उसकी यात्रा उत्तरजीविता, संघर्ष और सशक्तिकरण की है। अपने करैक्टर के माध्यम से एक्ट्रेस ने दुर्गा की भावनात्मक परेशानियों को दर्शाया है। साथ ही दुर्गा ने अपने और अपने जैसे अन्य लोगों के लिए न्याय मांगने की ताकत को भी उजागर किया है। इस किरदार में एक पीड़िता से एक लड़ाकू में बदलने तक महिलाओं की अदम्य भावना का एक प्रमाण है।



ब्रह्मा जेनेन गोपोन कोमोती (2020):


ब्रह्मा जेनेन गोपोन कोमोती में एक्ट्रेस रिताभरी चक्रवर्ती का शबरी का किरदार समकालीन नारीवाद पर एक ताज़ा प्रस्तुति है। शबरी एक मॉडर्न युवा महिला है जो अपने समाज की सदियों पुरानी रीति-रिवाजों पर सवाल उठाती है, जो महिलाओं को वशीभूत करते हैं। वह मासिक धर्म से जुड़े पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देती हैं और सवाल करती हैं कि महिलाओं को उनके पीरियड्स के दौरान धार्मिक प्रथाओं से बाहर क्यों रखा जाता है। अपने किरदार के माध्यम से रिताभरी शिक्षा, आत्म-जागरूकता और परंपरा पर सवाल उठाने और चुनौती देने के अधिकार के महत्व पर जोर देती है।


प्रोवोक्ड (2006):


सच्ची कहानी पर आधारित फ़िल्म प्रोवोक्ड में किरणजीत अहलूवालिया का किरदार ऐश्वर्या राय की एक ऐसी महिला का सशक्त किरदार था, जिसने प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी असली ताकत को अनुभव किया। इस फ़िल्म में किरनजीत एक प्रताड़ित पत्नी ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित होती है और अपने पति को आग में जला देती है। यह फिल्म मानवीय भावना के लचीलेपन को उजागर करते हुए पीड़ित से उत्तरजीवी तक की उसकी यात्रा को दिखाती है।

 

वॉटर (2005):


वॉटर में लीजा रे का कल्याणी का चित्रण स्वतंत्रता-पूर्व भारत में सामाजिक मानदंडों के खिलाफ एक विधवा के संघर्ष का एक मार्मिक चित्रण था। कल्याणी सवाल करने, चुनौती देने और अपने भाग्य को फिर से परिभाषित करने की ताकत का प्रतीक है। अन्य विधवाओं के साथ संबंध बनाते हुए परंपरा के बंधनों से मुक्त होने के किरदार के दृढ़ संकल्प ने एकता की शक्ति और मानवीय भावना को प्रदर्शित किया।


भारतीय सिनेमा में मजबूत महिला किरदारों के ये चार अपरंपरागत चित्रण हमें याद दिलाते हैं कि ताकत विभिन्न रूपों में आती है और सबसे अप्रत्याशित स्थानों में पाई जा सकती है। यहा सशक्त 4 किरदार सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हैं, अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं और इस जटिल दुनिया में एक महिला होने की सीमाओं को आगे बढ़ाते और चुनौती देते हैं।

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