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**अर्जुन कपूर: बैसाखी का अर्थ है विजय और नए आरंभ का प्रतीक**

 **अर्जुन कपूर: बैसाखी का अर्थ है विजय और नए आरंभ का प्रतीक**


जैसे ही रंग-बिरंगा त्योहार बैसाखी आता है, जो सिख नववर्ष और वसंत ऋतु की फसल का त्योहार है, अर्जुन कपूर इसके महत्व पर विचार करते हैं। वह अपने बचपन की यादों, व्यक्तिगत मूल्यों और बदलती परंपराओं से प्रेरित होकर इस त्योहार से अपने जुड़ाव को साझा करते हैं। वह मानते हैं कि आज त्योहारों का स्वरूप बदल गया है, लेकिन यह बदलाव उनके भावनात्मक जुड़ाव को कम नहीं करता — यह जुड़ाव परिवार, भोजन और श्रद्धा से गहराई से जुड़ा है।


**‘गुरुद्वारा और खाना मेरी बैसाखी की यादों का मूल है’**  

अर्जुन की शुरुआती बैसाखी की यादें शहरी माहौल और उनके पंजाबी मूल दोनों से प्रभावित रही हैं। वे बताते हैं, “मेरे नाना-नानी अंबाला से थे और मेरी दादी-दादा भी पंजाबी थे।” उनके परिवार के लिए, जैसे कई और परिवारों के लिए, त्योहारों का मतलब होता था स्वादिष्ट भोजन। “वो हर त्योहार खाने के साथ मनाते थे,” वे याद करते हैं। घर पर त्योहार का मुख्य हिस्सा सामूहिक भोजन और गुरुद्वारा जाना होता था। “तो घर पर जो खाना बनता था, वो उस त्योहार का हिस्सा होता था, बैसाखी भी अलग नहीं थी।”



उनकी यादें जीवंत संवेदनाओं से भरी हुई हैं। “मुझे याद है कि मैं बहुत छोटा था, पर गुरुद्वारे जाने की झलकें याद हैं। और वहाँ लंगर लगता था, तो हलवा खाने में बहुत मजा आता था। हलवा-पूरी मिलती थी,” वे मुस्कुराते हुए याद करते हैं। यही दो चीज़ें — *गुरुद्वारा और खाना* — उनकी बैसाखी की यादों की आत्मा हैं। “जो हलवा होता था, उसका घी इतना होता था कि पूरी प्लेट चमकती थी। मुझे वो बहुत अच्छे से याद है।” गुरुद्वारे से जुड़ा यह रिश्ता अब भी बना हुआ है। “मुझे आज भी गुरुद्वारे जाने में बहुत सुकून मिलता है,” वे जोड़ते हैं।


**‘भारतीय त्योहार विविध और समावेशी हैं’**  

अर्जुन मानते हैं कि आज के दौर में त्योहारों का स्वरूप अधिक सरल हो गया है — अब यह भव्य परंपराओं की बजाय भावना को समझने और सम्मान देने की बात है। वे कहते हैं, “हमें इस बात की समझ के साथ त्योहार मनाने चाहिए कि वह किसी समुदाय के लिए पावन दिन है। आज बैसाखी सिखों के लिए है, कल गणपति मराठियों के लिए होगा, या दुर्गा पूजा बंगालियों के लिए।”


उन्हें लगता है कि भारत की खूबसूरती इसकी समावेशिता में है। “आज एक छुट्टी है जिसमें आप शामिल हो सकते हैं। अगली बार किसी और समुदाय की छुट्टी है, उसमें भी आप शामिल हो सकते हैं — और यही बात मुझे अपने देश के बारे में सबसे ज़्यादा पसंद है। जरूरी नहीं कि आप उसे अपने घर में मनाएं या उसकी हर परंपरा निभाएं। वह आपके आसपास मनाई जा रही होती है।”


**‘काश हमारी इंडस्ट्री में भी एक दिन होता जब हम अपने प्रयासों का जश्न मना सकते’**  

वही भावना फिल्म इंडस्ट्री पर लागू करते हुए अर्जुन एक ख्वाहिश ज़ाहिर करते हैं। “काश हमारे प्रोफेशन में भी साल में एक दिन ऐसा होता, जब हम अपने प्रयासों का बिना किसी तनाव या एजेंडे के जश्न मना सकते। जब फिल्म चल जाती है, तो हम कहते हैं कि बैसाखी की तरह हमने भी मेहनत का फल पाया। लेकिन जब चीज़ें नहीं चलतीं, तो हम उससे सीखते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।”


**‘बैसाखी गहरा प्रतीकात्मक त्योहार है’**  

वह बैसाखी के सांस्कृतिक और कृषि महत्व पर भी बात करते हैं। “हिंदुस्तान किसानों का देश है। मेरे लिए, किसान ही हमारे देश की असली पहचान हैं। हमने हमेशा इस बात का उत्सव मनाया है कि हम अन्न उगाते हैं, और बैसाखी वो समय है जब फसल काटी जाती है।” वह किसानों की मेहनत को नमन करते हैं जो महीनों की कठिन मेहनत और प्राकृतिक चुनौतियों से जूझते हैं। “यह त्योहार दिखाता है कि मेहनत का फल मिलता है। यह नए आरंभ, विजय और पूरे देश को भोजन देने की क्षमता का प्रतीक है।”


**‘आप त्योहार न भी मनाएं, लेकिन उसकी इज्जत करें’**  

त्योहारों के बदलते स्वरूप पर बात करते हुए वे उस पीढ़ी की बात याद करते हैं, जो अक्सर कहती थी: *हमारे ज़माने में ऐसा नहीं होता था।* वे कहते हैं, “जब हम बड़े हो रहे थे, तब हमारे माता-पिता कहते थे कि त्योहार पहले जैसे नहीं मनाए जाते, और अब हम खुद उसी दौर में पहुंच गए हैं।” वे मानते हैं कि बदलाव तो ज़रूरी है, तकनीक और जीवनशैली ने त्योहारों के तौर-तरीकों को बदला है। “हर किसी के पास हर त्योहार को मनाने की क्षमता या समय नहीं होता... लेकिन जब तक आप उसका सम्मान करते हैं, उसकी सच्ची भावना को समझते हैं — *आप त्योहार न भी मनाएं, लेकिन उसकी इज्जत करें* — तो वो भी एक बड़ा सम्मान है।”

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