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*भारतीय और पश्चिमी प्रभाव के बीच संतुलन बनाकर राम माधवानी बने एक बेहतरीन फ़िल्म निर्माता*

 *भारतीय और पश्चिमी प्रभाव के बीच संतुलन बनाकर राम माधवानी बने एक बेहतरीन फ़िल्म निर्माता*


*दूसरों से अलग तरह का काम करने के बारे में राम माधवानी ने कहा, “मैं अपनी जड़ों से जुड़ा हूं, लेकिन कुछ अंतरराष्ट्रीय विचारधाराओं से भी प्रभावित रहा हूं’*



*नेशनल* : राम माधवानी का फिल्मों या सिनेमा से लगाव और प्यार तभी शुरू हो गया था जब वे पंचगनी के सेंट पीटर्स स्कूल में थे। यहां हर शनिवार को होने वाली फिल्म स्क्रीनिंग उनके बचपन के दिनों या यादों का एक खास हिस्सा हैं। उन दिनों उनके लिए स्कूल के असेंबली हॉल में फिल्में देखने की उत्सुकता और रोमांच ही कुछ और होता था जबकि स्टील के एक संदूक से अनोखी फिल्मों की रील निकलती थी और यहीं से फिल्मों को लेकर उनके गहरे लगाव की शुरुआत हुई। अपने उन शुरुआती वर्षों के बारे में वे कहते हैं, “अगर आप मेरे उन दिनों के स्कूल के दोस्तों से पूछते कि वे बड़ा होकर क्या बनना चाहते हैं, तो उनके बीच शायद मैं इकलौता ही होता जो कहता कि मुझे फ़िल्म निर्माता बनना है। मुझे नहीं पता कि यह सब कैसे हुआ।”


स्कूल के बाद सिनेमा के साथ उनका लगाव और भी बढ़ता गया। बचपन में सोलापुर के नजदीक बार्शी जैसी छोटी जगह पर जब वे छुट्टियां मनाने जाते, तो उनके इस शौक को और भी बढ़ावा मिलता। इसकी वजह यह थी कि इस जगह चार सिनेमाघर थे और उनमें उन्हें कई तरह की फिल्में देखने को मिल जाती थीं। इन सिनेमाघरों का नाम मंगेशकर बहनों के नाम पर रखा गया था। सिनेमाघर हाउसफुल हो या नहीं हो, उन्हें हर हाल में सीट मिल जाती थी। वे मैंगो ज्यूस और पॉपकॉर्न के साथ फिल्म का पूरा लुत्फ लेते थे। उन्हें यह सुविधा भी थी कि वे एक ही फिल्म को कई बार भी देख सकते थे। इससे भारतीय और पश्चिमी सिनेमा का उन पर गहरा असर होना शुरू हुआ। यहीं उन्होंने ‘यादों की बारात’ करीब 12 बार और ‘जुगनू’ 9 बार देखी और इससे कहानी को किस तरह कहना चाहिए या परदे पर उतारना चाहिए उन्होंने यह कला सीखी।


उन्होंने कॉलेज में भी अपने इस शौक को आगे बढ़ाना जारी रखा और मैक्स मूलर भवन और ब्रिटिश कौंसिल जैसे संस्थानों के जरिए उन्होंने दुनियाभर के सिनेमा को देखा, जाना और समझा। इस दौरान दुनिया के महान फ़िल्मकारों का प्रभाव भी उन पर हुआ। वे कहते हैं, “एक तरफ जहां हम यश चोपड़ा की फिल्में देख रहे थे तो दूसरी तरफ फेलिनी और श्याम बेनेगल की फिल्में। एक फ़िल्म निर्माता के तौर पर मैं इन दोनों दुनियाओं के बीच संतुलन साधने की कोशिश करता हूं। जहां मैं भारतीय फिल्म निर्माण के साथ अपनी जड़ों से जुड़ा हूं, तो मैंने अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को भी स्वीकार किया है।”



राम अपने अलग तरह के सिनैमेटिक विजन के बारे में यह भी कहते हैं, “मैं ऐसा फ़िल्म निर्माता हूं जो एक तरफ अंतरराष्ट्रीय है तो दूसरी तरफ भारतीय। साथ ही एक ऐसा फ़िल्म निर्माता जिसने फिल्म निर्माण के लिए वैश्विक भारतीय दृष्टिकोण अपनाया है। मैं अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहता हूं, लेकिन मैं यह भी चाहता हूं कि मुझ पर बाहर के असर भी पड़ते रहें और मुझे लगता है कि यही वजह है कि शायद मैं दूसरे फिल्मकारों से अलग नजर आता हूं। मैं अपनी जड़ों से जुड़ा हूं, लेकिन मैं खुद पर कुछ अंतरराष्ट्रीय विचारधाराओं का असर भी पाता हूं।” फिल्म बनाने या कहानी को परदे पर उतारने के भारतीय और पश्चिमी तरीके के बीच संतुलन बनाकर राम माधवानी खुद को कलात्मक रूप से व्यक्त करते आए हैं।


शुरुआती दिनों के इस प्रभाव के वजह से ही माधवानी ‘नीरजा’ और ‘आर्या’ जैसी पुरुस्कार विजेता और सशक्त फिल्म और शो बना पाए जिन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। अब उनकी एक नई सीरीज आने वाली है जिसका नाम है ‘द वेकिंग ऑफ अ नेशन’। यह 7 मार्च 2025 को सोनीलिव (SonyLIV) पर रिलीज होगी। इस सीरीज के साथ हमें फिर से यह देखने को मिलेगा कि फिल्मों से गहरे प्रभावित रहे एक बच्चे से लेकर शानदार और सशक्त कहानियां परदे पर लाने वाले फिल्मकार के तौर पर उनका सफर लगातार जारी है।

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